Friday, September 14, 2007

सफ़ीना और समंदर









बदला बदला हवा का तेवर है
अब सफ़ीना है और समंदर है

मेरी नज़रों में हम नज़र के बग़ैर
झील सहरा है फूल पत्थर है

इश्क की मौज जिसको कहते हैं
इक दहकता हुआ समंदर है

कोई मंज़र हँसी नहीं भाता
वो उदासी नज़र के अन्दर है

जो मिला मुझको बेवफा ही मिला
सोनी मेरा भी क्या मुकद्दर है

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