Saturday, September 15, 2007

ज़ीनत तेरी बदन की

ज़ीनत तेरे बदन की हूं तेरा लिबास हूँ
अब मैं तेरे वजूद की पुख्ता असास हूँ

माना कि रात दिन मैं तेरे आसपास हूँ
लेकिन तेरे सुलूक से हर पल उदास हूँ

महरूम तेरी प्यास की लज़्ज़्त से जो रहा
मैं ही वो बदनसीब छलकता गिलास हूँ

रंगीनिये जहान से महरूम मैं रही
चरखे के पास जो न गया वो कपास हूँ

तर्के तआल्लुकात के बारे में क्या कहूं
गिरते हुए मकान की सोनी असास हूँ

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