Saturday, May 2, 2015

चाँद पागल हो गया { ग़ज़ल }

बेख़बर सोती रही तो चाँद पागल हो गया
इस तरह की दिल्लगी तो चाँद पागल हो गया

रौशनी मेरे बदन की रात के पिछले पहर
चांदनी सी खिल गयी तो चाँद पागल हो गया

रात भर आकाश पर काली घटा छाती रही
जब हवा ठंडी चली तो चाँद पागल हो गया

रात की रानी सी ख़ुशबू  शाम के ढलने के बाद
मेरी ज़ुल्फ़ों से उड़ी तो चाँद पागल हो गया

रूठ कर बादल चले हैं रूठ कर तारे चले
रूठ कर बदली चली तो चाँद पागल हो गया

रात की तन्हाइयों की बात सोनी सुब्ह दम
शोख़ लहजे में कही तो चाँद पागल हो गया 

2 comments:

Anonymous said...

Superb poem! Kudos to a wonderful poetess and shayara

dypcq.diepou said...

chand to pighal gaya, taaron ka bhi mann machal gaya,
apni ushma mein sooraj bhi jal gaya,
kyunki sab par aap ka jo jadoo chal gaya.